सोमवार, 16 मई 2011

जादूगरी   

करिश्मों  की  बातें 
करामात  का  ज़िक्र 
जादूगरी  के  फ़साने 
कभी  दास्तानों  में  हमने  पढ़े  थे 

सुना  था 
कोई  जादूगर 
जागते  पानी  में 
आग  के  सौ  जजीरे  बनता 
शरारों से 
फूलों  की  किस्में  उगाता 
उजड़ी --- मनहूस  सी  बसतियों  को 
वो  गुलज़ार  करके 
उन्हें  परिओं   और  अपसराओं  से  आबाद  करता 

कभी 
शहर  के  शहर 
बस्ती  की  बस्ती  को 
एक  पल  में  सहरा  बनता 

कभी  चाँद  सूरज  को 
मुट्ठी  में  वो  क़ैद  करता 
कभी 
अपनी  खाली  हथेली  पे  सौ  चाँद  सूरज  जगाता 

सुना  था 
कोई  जादूगर 
दरख्तों  की  शाखों  को 
ज़हरीले  साँपों  में  तब्दील  करता 

कभी 
आसमान  के  परिंदों  की  परवाज़  को  रोक  लेता 
कभी 
उनके  पर  काट  कर 
उनको  फिर  से  उड़ाता. 

करिश्मों 
करामात-ओ-जादूगरी  के  ये  सारे  फ़साने 
कभी  दास्तानों  में  हमने  पढ़े    थे 
हका-एक  के  इस  दौर  में 
गरचे  
जादूगरी  के  ये  सारे  फ़साने 
फ़क़त  एक  तफरीह  हैं 
अक्ल  की  रौशनी  से  बहुत  दूर  हैं 
लोग  देखेंगे  लेकिन 

किसी  रोज़  ----  बाज़ार  में 
चलते  चलते  मैं 
पत्थर  में  तब्दील  हो  जाऊंगा  !! 

कोई टिप्पणी नहीं: